पिता की सम्पत्ति मे हिन्दू महिलाओ को अधिकार देने वाले कानुन पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले से क्या बदला है
ये एक ऐसा सवाल है जिस से ज्यातर महिलाऐं जूझ रही हैं क्योकि भारत मे महिलाओं को पिता की सम्पत्ति मे अधिकार मागने के लिए कानून से पहले एक लम्बी सामाजिक जंग को जीतना पड़ता है
महिलाएं जब सामाजिक रिश्तो को ताक पर रखकर पिता की सम्पत्ति मे हिस्सेदारी की मांग करती थी तो हिंदू उत्राधिकार संसोधन कानून 2005 कई महिलाओं के सामने अडचन पैदा किया करता था .
कई महिलाएं कोर्ट पहुँची परन्तु उन्हें निराशा हाथ लगी . वही दन्नाम बनाम अमर ममले कोर्ट ने महिलाओं के हक मे फैसला दिया.
सर्वोच्च न्यायालय ने कया कहा
जस्टिस अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा की एक हिन्दू महिला को पिता की सम्पत्ति मे सयुक्त उत्राधिकार होने का अधिकार जनम से मिलता हैं
अपने इस निर्णय मे सर्वोच्च न्यायालय ने हिनदू उत्राधिकार अधिनियम मे वर्ष 2005 किये गये संसोधन का विस्तार किया है.
तथा इस अधिनियम पर ये शर्तें लागू नही कि साल 2005 मे हिन्दू उत्राधिकार मे संसोधन के
समय अधिकार मांगने वाली महिला के पिता जिवित थे या नही .
ये उन सभी पर लागु होता है जो धर्म से मुस्लिम , ईसाई , पारसी या यहुदि नही है . जबकि बोथ , सिख , जैन , आर्य , ब्रह्मा समाजी को इस कनुन के तहत हिन्दू माना गया है .
सर्वोच्च न्यायालय ने 6 माह के भितर इस ममले से जुड़े ममलो को निपटने का भी निर्देश
दिया है .
हिन्दू उत्राधिकार ( संसोधन ) अधिनियम 2005
वर्ष 1956 के अधिनियम को सितम्बर 2005 मे संसोधित किया गया और वर्ष 2005 से समपत्ति विभाजन के मामलो मे महिलाओं को उत्राधिकार की मनयता दी गयी.
लेकिन जब महिलाओं की तरफ से अधिकार की मांग की गयी तो मामले कोर्ट पहुंचे और कोर्ट पहुंचकर भी फैसले महिलाओं के पक्ष मे नही हुए .
साल 2015 मे प्रकाश बनाम फूलवती मामले मे 2 जजो की एक बेंच ने स्पष्ठ रुप से कहा की अगर पिता कि मौत हिन्दू उत्राधिकार संसोधन कानुन 9 सितम्बर 2005 को पास होने से पहले हो गयी है तो बेटी को पिता कि सम्पत्ति मे कोई अधिकार नही मिलेगा .
लकिन इसके बाद साल 2018 मे दननाम बनाम अमर मामले मे 2 जजो कि एक अन्य बेंच ने अपने फैसले मे कहा कि भले ही पिता कि मौत कानुन लगु होने के बाद हुई हो तब भी बेटी को पिता कि सम्पत्ति मे बराबर का अधिकार मिलना चाहिए . इसके बाद जस्टिस एके सिकरी की अधयक्षता वाली बेंच ने इन विरोधाभासी फैसले को देखते हुए कहा की एक 3 बेंच इसपर अपना फैसला दे .
और अब जस्टिस अरुण मिश्रा , जस्टिस अबदुल नजीर , जस्टिस एमआर शाह इस मसले पर फैसला सुना कर महिलाओं के सामने खड़े उस सवाल को हल कर दिया है कि उनहे पिता की सम्पत्ति मे कितनी हिस्सेदारी शामिल है .
कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया की अब महिलाओं को वही हिस्सादारी शामिल होगी जितनी उनहे उस स्तिथि मे अगर वे एक लडके के रुप मे जनम लेती . यानी लडके और लड़की को पिता की समपत्ति मे बराबर का उत्राधिकार मिलेगा चाहे पिता की मौत कभी भी हुई हो ........
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