अमेरिका विदेश मंत्री एंटोनी ब्लिंकेन ने अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी को एक चिठ्ठी लिखकर अफगानिस्तान में शांति के लिए बातचीत को तेज करने को कहा है और साथ में कुछ उपाएँ भी सुझाए है.
TechQureshi:-अफगानिस्तान के एक समाचार चैनल "टोलो न्यूज़ " ने सात मार्च को इस चिठ्ठी को छापा है. इसमें अफगान सरकार और तालिबान के बीच शांति बहाली के लिए बात-चीत को फिर से शुरू करने के लिए संयुक्त राष्ट्र के नेतृत्व में एक बैठक बुलाने की भी बात की गयी है.
बैठक में अंतर्राष्ट्रीय स्टेकहोल्डर्स को शामिल करने की भी बात की गई है. इस चिठ्ठी में 4 सुझाव दिये गए है. ये चिठ्ठी भारत के लिहाज से काफी अहमियत रखती है क्यूंकि इस चिठ्ठी में अफगान शांति प्रक्रिया में भारत को भी एक हिस्सेदार के रूप में माना गया है.
इस चिठ्ठी में कहा गया है कि "हम संयुक्त राष्ट्र से अनुरोध करना चाहते है कि वे रूस ,चीन , पाकिस्तान , ईरान , भारत , और अमेरिका के विदेश मंत्रियो और राजदूतो की मिटींग बुलाए जिसमें अफगान शांति को मदद करने वाली संयुक्त अप्रोच पर चर्चा की जा सके.
एस. जयशंकर ने एक twitter पर लिखा.
"अमेरिकी विदेश प्रतिनिधि जलमय खलीलजाद का कॉल आया. शांति वार्ता के सम्बन्ध में हालिया घटनाक्रमों पर चर्चा हुई. हम संपर्क में रहेंगे.
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भारतीय प्रधानमंत्री -अफगानिस्तानप्रधानमंत्री |
साथ ही ब्लिंकेन ने यह भी स्पष्ट किया है. कि अमेरिका अफगानिस्तान से संपूर्ण सैन्य वापसी की एक मई की डेडलाइन के साथ-साथ सभी विकल्पों पर विचार कर रहा है. आपको बतादें कि फरवरी 2020 में अमेरिका और तालिबान के बीच एक शांति समझोता हुआ था जिसके तहत विदेशी सैन्य बलों को अफगानिस्तान छोडकर जाना होगा.
भारत के लिए कितना अहम है अफगानिस्तान शांति समझोतों में शामिल होना ?
इस बात-चीत में भारत को एक स्टेकहोल्डर के रूप में मान्यता मिलना भारत की एक बड़ी उपलब्धियों में से एक है. अब तक भारत को इस वार्ता में वैसी भूमिका नहीं मिल पा रही थी जिसकी भारत काफी समय से मांग कर रहा था क्यूंकि भारत ने अफगानिस्तान में इन्फ्रास्ट्रक्चर समेत विकास के कामो में योगदान और मानवीय मदद की है. एक्सपर्ट की माने तो ब्लिंकेन की चिठ्ठी में भारत को बात-चीत में शामिल किया जाना एक महत्वपूर्ण बात है.
गेटवे हाउस के इंटरनेशनल सिक्योरिटी स्टडीज प्रोग्राम के फेलो समीर पाटिल कहते है कि " अभी तक अमेरिका को लगता था कि अफगानिस्तान में शांति के लिए सबसे बड़ी भूमिका पाकिस्तान की होगी. अब अमेरिका इस निति से हट रहा है अब वह सभी देशो को साथ लेकर इस बातचीत को आगे बढ़ाना चाहता है. वे आगे कहते है कि डोनाल्ड ट्रंप के समय शुरू की गई अफगान शांति प्रक्रिया में भारत की उतनी भूमिका नहीं थी. लेकिन अब आये बाइडन प्रशासन में इस गलती को ठीक किये जाने की कोशिश की जा रही है. भारत के साथ रूस व ईरान को भी शामिल किया गया है.
रूस नहीं चाहता था कि भारत हो इस वार्ता का हिस्सा.
अंग्रेजी अख़बार 'दा इंडियन एक्सप्रेस ' के अनुसार रूस और चीन के बीच बढ़ती नजदीकी के तहत रूस ने जो तरीका सुझाया था , उसमे रूस, चीन,अमेरिका,पाकिस्तान,और ईरान को बातचीत में शामिल किए जाने की बात की गई थी
एक अधिकारी ने अख़बार से बताया की ऐसा पाकिस्तान के कहने पर किया गया था जो नहीं चाहता की भारत इस इलाके में शांति के लिए तैयार किये जा रहे रोडमैप का हिस्सा बने.लेकिन भारत इस पर लम्बे समय से काम कर रहा था. इसके लिए भारत ने अफगानिस्तान और उससे बाहर सभी किरदारों पर संपर्क साधा ताकि भारत बातचीत की इस टेबल का हिस्सा बन सके.
पाकिस्तान के लिए चिंता का विषय
अफगानिस्तान में शांति बहाली की बातचीत में भारत को शामिल किए जाने का जिक्र पाकिस्तान के लिए बैचेनी का विषय है पाकिस्तान ये नहीं चाहता है की अफगानिस्तान में भारत की मोजुदगी मजबूत हो. और कुछ पिछले समय से भारत- अफगानिस्तान के बीच रिश्ते मजबूत हुए है
भारत ने अफगानिस्तान में इन्फ्रास्ट्रक्चर और विकास के दुसरे कामो में सक्रियता से योगदान दिया है.हारून कहते है कि भारत को बातचीत शामिल करने पर पाकिस्तान को एतराज जरुर होगा. हालाँकि विदेशी दफ्तर के बयान से ही तस्वीर साफ होगी. वे कहते है की हो सकता है कि पाकिस्तान खुलेआम इसका जिक्र नहीं करे, पर कुटनीतिक स्तर पर वह इसे अमेरिका के साथ उठा सकता है. इससे तनाव पैदा हो सकता है.
वे कहते है कि जयमल खलीलजाद की भारतीय विदेश मंत्री एस.जयशंकर से बातचीत भी पाकिस्तान के लिए एक टेंशन की बात है.
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