प्रधानमंत्री ने बदले तीन आइलैंड के नाम.
जय हिन्द दोस्तों आज हम जानेंगे कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने किन तीन आइलैंड का नाम बदला है. और साथ में एक नया सिक्का भी जारी किया है.
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अंडमान-निकोबार द्वीप समूह क 03 द्वीपों को नया नाम दिया है. ये नामांकरण 30 दिसम्बर 2018 को किया गया. प्रधानमंत्री ने इस विशेष दिन पर नेता जी के यहाँ तिरंगा फहराने की स्मृति में स्मारक डाक टिकट और 75 रूपये का सिक्का भी जारी किया इस सिक्के में सेलुलर जेल की प्रष्ठभूमि में धवज को सलाम करते हुए नेता जी सुभाष चन्द्र बॉस के झंडा फहराने की प्रतिकृति बनी है. चित्र के नीचे वर्षगाँठ के साथ 75 का अंक छपा है. यह सिक्का झंडा फहराने की 75 वीं वर्षगाँठ को समर्पित किया गया है. प्रधानमंत्री ने एक 7 मेगावाट का सौर उर्जा प्लांट व एक आदर्श सौर गाँव स्थापित किए जाने की घोषणा की.
द्वीप का पुराना व नया नाम
1. राॅस आइलैंड - नेताजी सुभाष चन्द्र बॉस
2. हेवलाॅक आइलैंड - स्वराज द्वीप
3. नील आइलैंड - शहीद द्वीप
1. राॅस आइलैंड
अपने कार्य-काल में पहली बार यहाँ पहुंचे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नेता जी सुभाषचंद्र बॉस के द्वीप समूह पर तिरंगा फहराने की 75वीं सालगिरह पर राॅस आइलैंड का नामकरण उनके नाम पर करने की घोषणा की. अब इस द्वीप को नेताजी सुभाष चन्द्र बॉस द्वीप के नाम से जाना जायगा.
हेवलाॅक आइलैंड
प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी ने घोषणा की, कि अब हेवलाॅक आइलैंड को स्वराज द्वीप के नाम से जाना जायगा.
इस द्वीप पर सन 1971 में बंगलादेश के आजाद होने के दौरान आये शरणार्थियो और उनके वंशज है. को भारत सरकार ने यहाँ बसाया था. तथा हेवलाॅक आइलैंड पर 5 गाँव (village) है. जिनका नाम- गोविन्द नगर, विजय नगर, श्याम नगर, कृष्ण नगर, राधा नगर . सन 2004 में Times (अंग्रेजी पत्रिका) में छपे एक लेख में पश्चिमी तट जो की राधा तट कहलाता है, को एशिया का सर्वोत्तम तट घोषित किया था.
नील आइलैंड
प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी ने घोषणा की, कि अब नील आइलैंड को शहीद द्वीप के नाम से जाना जायगा.
दित्तीय विश्व युद्ध में नेता जी सुभाष चन्द्र बॉस अंडमान निकोबार पर जापानी सेना के कब्जे के बाद 30 दिसम्बर 1943 में यहाँ पहुंचे थे. और नेता जी ने ही अंडमान निकोबार का नाम बदल कर शहीद और स्वराज द्वीप करने की सलाह दी थी.
अंडमान निकोबार द्वीप का इतिहास
1857 में भारत की आजादी के पहले संग्राम के बाद ब्रिटिश साम्राज्य ने बागियों को अंडमान निकोबार के द्वीपों पर लाकर कैद किया जाता था, जिनमे से राॅस आइलैंड भी एक था. 1858 में जब 200 बागियों को लेकर एक जहाज अंडमान पहुंचा था. तो उस समय सभी द्वीप घने जंगलो में तब्दील था. वहाँ पर इंसानों का रहना लगभग नामुमकिन था. राॅस आइलैंड का क्षेत्रफल 0.3 वर्ग किलोमीटर था. राॅस आइलैंड को कैदियों को रखने के लिए इस लिए चुना गया था. क्योंकि राॅस आइलैंड परपीने का पानी मौजूद था.
जंगलो को साफ़ करने की जिम्मेदारी उन्ही कैदियों को दी गई जो यहाँ पर कैद कर लाये जाते थे. और ब्रिटिश अधिकारी अपने जहाज पर रहते थे.
ब्रिटिश अधिकारियों ने राॅस आइलैंड को अंडमान का प्रशासनिक मुख्यालय बनाने की ठानी. अंडमान मेंबहुत ज्यादा बीमारियाँ फैलती थी, इसलिए ब्रिटिश अधिकारियो और उनके परिवार को बचाने के लिए राॅस आइलैंड पर बेहद खुबसूरत इमारते बनाई गई. यहाँ पर चर्च के साथ-साथ एक पानी साफ़ करने का प्लांट बनाया गया. इसके अलावा राॅस आइलैंड पर सेना का बैरक और एक अस्पताल भी बनाया गया था.
लेकिन 1942 तक राॅस आइलैंड सुनसान हो गया. क्योंकि सियासी वजहों से ब्रिटिश सेना को 1938 में सभी राजनैतिक बंदियों को अंडमान से रिहा करना पड़ा था. दित्तीय विश्व युद्ध के दौरान जापान के हमले की आशंका के चलते अंग्रेज राॅस आइलैंड से भाग गये.
जब 1947 में भारत आजाद हुआ तो अंडमान निकोबार के द्वीप भी भारत के हिस्से में आये. लेकिन बाद में राॅस आइलैंड को इसके हाल पर छोड़ दिया गया था, 1979 में एक बार फिर से भारतीय सेना ने इस पर कब्ज़ा कर लिया.
0 टिप्पणियाँ